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प्राचीन भारत
साहित्यिक साक्ष्य
साहित्यिक साक्ष्य के अंतर्गत साहित्यिक ग्रंथों से प्राप्त सामाग्रियों का अध्ययन किया जाता है।
यह दो प्रकार के हैं-धार्मिक साहित्य एवं लौकिक साहित्य | पुरालेख शास्त्र शिलालेख का अध्ययन करता है। ऐतिहासिक लेखों का संरक्षण विज्ञान
म्यूजियोलॉजी शाखा के अंतर्गत आता है।
धार्मिक साहित्य
धार्मिक साहित्य के अंतर्गत ब्राह्मण तथा ब्राह्मणेत्तर ग्रंथों की चर्चा की जा सकती है।
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ब्राह्मण ग्रंथों के अंतर्गत वेद, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, पुराण तथा स्मृति ग्रंथ आते हैं। • ब्राह्मणेत्तर साहित्य के अंतर्गत बौद्ध तथा जैन साहित्य से सम्बन्धित रचनाओं का उल्लेख > किया जाता है।
चारों वेदों में सर्वाधिक प्राचीन ऋग्वेद में 10 मण्डल, 8 अष्टक, 10,600 मंत्र एवं 1028 सूक्त हैं। > ऋग्वेद का रचना काल सामान्यतः 1500 ई. पू. से 1000 ई.पू. के बीच माना जाता है।
ऋग्वेद का दूसरा एवं सातवाँ मण्डल सर्वाधिक प्राचीन तथा पहला एवं दसवाँ मण्डल सबसे बाद का है।
< • ऋग्वेद के नौवें मण्डल को सोम मण्डल भी कहा जाता है।
- ऋग्वेद की मान्य 5 शाखाएँ हैं- शाकल, आश्वलायन, माण्डूक्य, शांखायन एवं वाष्कल । > ऋग्वेद के 10वें मण्डल के पुरुषसूक्त में सर्वप्रथम वर्ण व्यवस्था का उल्लेख मिलता है। <
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- सामवेद को भारतीय संगीत का मूल अथवा जनक कहा जाता है। यह मुख्यतः यज्ञों के अवसर पर गाए जाने वाले मंत्रों का संग्रह है। सामवेद में कुल 1549 ऋचाएँ हैं। इनमें मात्र 78 ही नई हैं, शेष ऋग्वेद से ली गई हैं।
इस वेद की तीन मुख्य शाखाएँ हैं- जैमिनीय, राणायनीय तथा कौथुम । – यजुर्वेद में यज्ञ के नियमों एवं विधि-विधानों का संकलन मिलता है। यह एकमात्र ऐसा वेद है जो >
- इस वेद के दो भाग हैं-कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद ।
- कृष्ण यजुर्वेद की चार शाखाएँ हैं-तैत्तिरीय, काठक, कपिष्ठल, मैत्रायणी । • यजुर्वेद धार्मिक अनुष्ठानों से संबंध रखता है। <
< शुक्ल यजुर्वेद की प्रधान शाखाएँ माध्यन्दिन तथा काण्व हैं। शुक्ल यजुर्वेद की संहिताओं के रचयिता वाजसनेयी के पुत्र याज्ञवल्क्य हैं, इसलिए इसे
वाजसनेयी संहिता भी कहा जाता है। इसमें केवल मंत्रों का समावेश है।
मण्डल, 731 ऋचाएँ तथा 5987 मंत्र हैं।
> अथर्ववेद में परीक्षित को कुरुओं का राजा कहा गया है। उपनिषद्ः इसका शाब्दिक अर्थ है समीप बैठना। इसमें आत्मा-परमात्मा एवं संसार के सन्दर्भ में
प्रचलित दार्शनिक विचारों का संग्रह है।
– उपनिषद वेदों का अन्तिम भाग है। इसे वेदान्त भी कहा जाता है।
> प्रमुख उपनिषद हैं – ईश, कठ, केन, मुण्डक, माण्डूक्य, प्रश्न, ऐतरेय, तैत्तिरीय, छान्दोग्य, बृहदारण्यक, श्वेताश्वर, कौषितकी एवं मैत्रायणी ।
वर्णन है। इनकी रचना वनों में पढ़ाए जाने के निमित्त की गई।
> प्रमुख आरण्यक हैं-ऐतरेय, शांखायन, तैत्तिरीय, बृहदारण्यक, जैमिनी, छान्दोग्य। > वेदांग: वेदों को भली-भाँति समझने के लिए छ: वेदांगों की रचना की गई है। ये वेदों के शुद्ध
उच्चारण तथा यज्ञादि करने में सहायक थे।
पुराणों की संख्या 18 है। अधिकांश पुराणों की रचना तीसरी चौथी शताब्दी में की गई थी।
> रामायणः यह आदि काव्य है इसकी रचना दूसरी शताब्दी के आस-पास संस्कृत भाषा में वाल्मीकि द्वारा की गई थी। प्रारम्भ में इसमें 6000 श्लोक थे जो कालांतर में 24,000 हो गए। इसे चतुवशति सहस्त्री संहिता भी कहा जाता है।
> महाभारत: इस महाकाव्य की रचना चौथी शताब्दी के आस-पास महर्षि व्यास द्वारा की गई थी। प्रारंभ में इसमें 8,800 श्लोक थे जिसे जयसंहिता कहा जाता था, तत्पश्चात् इसमें श्लोकों की संख्या 24,000 हो गई और इसे भारत कहा जाने लगा। कालांतर में इसमें श्लोकों की संख्या एक
लाख हो जाने पर महाभारत या शतसहस्री संहिता कहा जाने लगा। > महाभारत का प्रारंभिक उल्लेख आश्वलायन गृहसूत्र में मिलता है।
सूत्र: इस साहित्य की रचना ई. पूर्व छठी शताब्दी के आस-पास की गई थी। सूत्र ग्रंथों को कल्प
भी कहा जाता है।
> कल्प सूत्र: ऐसे सूत्र जिनमें नियमों एवं विधि का प्रतिपादन किया जाता है, कल्पसूत्र कहलाते हैं। (ई.पू. 600 से 300 ई. के मध्य रचित)
(क) श्रौत सूत्र: वेदों में वर्णित यज्ञ भागों का क्रमबद्ध विवरण उस काल की परम्पराओं तथा धार्मिक रूढ़ियों का ज्ञान ऋग्वेद के दो श्रौत सूत्र आश्वलायन, शांखायन, यजुर्वेद कात्यान आपस्तम्ब, हिरण्यकेशी, बोधायन, भारद्वाज मानव तथा वैखानज सामवेद-लाट्यान द्रामायण व आर्षेय। अथर्ववेद-वैतान।
(ख) गृहार सूत्र: गृहस्थाश्रम से संबद्ध धार्मिक अनुष्ठान (कर्तव्य) प्रमुख गृह सूत्र शांखायन आश्वलायन, बोधायान, आपस्तम्ब, हिरण्यकेशी, भारद्वाज पारस्कार गोभिल, खोदिर एवं कौशिक ।
वियोग नियम तथा गृहस्थ कर्तव्यों का विवरण । प्रमुख धर्मसूत्र वशिष्ठ मानव, आपस्तम्ब, बोधायन, गौतम, धर्मसूत्रों से ही कालान्तर में स्मृति ग्रंथों का विकास हुआ। (घ) शुल्व सूत्र: ‘शुल्व’ का तात्पर्य है-नापने की डोरी। इसमें यज्ञीय वेदियों को नापने, स्थान चयन
एवं निर्माणादि का वर्णन है। ये आर्यों के ज्यामिति ज्ञान का परिचायक है।
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